आज सुबह से ही पूरा घर खाने की महक से भर उठा था | नाश्ते में आज सब कुछ बाबू जी की पसंद का बना था, पोहे , आलू के परांठे , घर का बना मक्खन , गरमा-गर्म ख़ीर , साथ में दूध वाली कड़क चाय और फल भी | बहू ने बाबू जी के लिए खाना थाली में परोसा और बाबू जी ने चुप चाप नाश्ता किया और अपना पुराना सा थैला उठाया , ना जाने किस सदी की बनी आखरी सांसे लेती हुई चमड़े की चप्पल पहनी , खस्ता हालत में खड़ी अपनी साइकिल की चैन ठीक की और बाहर को चल दिए | अभी एक मोड़ ही मुड़े थे कि चप्पल टूट गयी , चप्पल जोड़ने की कोशिश की पर व्यर्थ | फिर अपना थैला उठाया और साइकिल पर सवार हो कर चल पड़े | मुश्किल से 1 मील चले और अब साइकिल की चैन निकल गयी | अब चैन ठीक करने की कोशिश की, तो चैन टूट कर हाथ में आ गयी | साइकिल को साथ में घसीटते हुए जैसे तैसे कर नंगे पाव बाबू जी बैंक पहुंचे | उनको देखते ही वहाँ के मैनेजर अपनी कुर्सी से खड़े हो कर उनके पास आए , पैर छू कर आशीर्वाद लिया | अरे बाबू जी आप यहाँ, मुझे बता दिया होता , मै आपको ले आता, आप कहा अये इतनी गर्मी मे | शामू बाबू जी के लिए शर्बत का इंतज़ाम करो | बाबू जी आप बैठो मै पानी लेके आया | बाबू जी ने पानी पी कर रमेश का हल चल पुछा | वक़्त-वक़्त की बात है, बचपन में रमेश के माता-पिता गरीब थे | जितनी कमाई होती थी, उसमे बस घर का खर्चा ही मुश्किल से चलता था | ऑफिस आते जाते समय बाबू जी रमेश को अक्सर देखा करते थे , रमेश कभी पेन बेच रहा होता, तो कभी खिलौने | बाबू जी ने रमेश के माता-पिता से बात करके उसकी सारी पढ़ाई की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली | नतीज़ा ये है कि रमेश आज बैंक का सीनियर मैनेजर है | बाबू जी ने रमेश को अपने कागज़ात दिखाए और रमेश ने उनको उनकी पेंशन के 20000 रुपये निकाल के दे दिये और बताया कि अभी कुछ दिन पहले ही उनके घर बेटी हुई है | बाबू जी ने शगुन के तौर पर पेंशन की रकम में से 500 रुपये रमेश को बटिया के शगुन के दे दिए | रमेश ने बहुत जोर लगाया पर बाबू जी की प्यार भरी ज़िद के आगे उसकी एक ना चली | बाबू जी को घर छोड़ने के लिए रमेश ने अपने ड्राईवर को गाड़ी निकलने को कहा | बाबू जी ने बहुत मना किया अबकी बार बाबू जी की एक ना चली | रमेश के कहे अनुसार ड्राइवर ने रास्ते में बाबू जी के लिए एक जोड़ी नई चप्पल खरीदी और उनकी साइकिल भी ठीक करवाई | घर पहुंचे ही थे कि बहू ने घर की चौंखट पर ही रोक लिया | बाबू जी के लिए ये कौन सा पहली दफ़ा था | सुबह के शाही नाश्ते से ही सब समझ गए थे बाबू जी | उन्होंने सारे पैसे बहू के हाथ में रख दिए और अंदर सोफ़े पर जा कर बैठ गए। 500 रुपये काम देख कर शीला आग बबूला हो उठी | नोटों की गिनती दोबारा की फिर 500 रुपये कम | चिल्लाते हुए पूरे घर में शोर मचा दिया | दीपक भी शोर सुन कर नीचे आ गया | बहू गुस्से में बाबू जी के पास आयी तो देखा नई चप्पल | अब तो शीला के गुस्से का कोई ठिकाना ही ना रहा | क्या-क्या खरी खोटी नहीं सुनाई बाबू जी को दोनों पति पत्नि ने मिल कर | इस उम्र में ना जाने कहा जाना है इन्होने जो नई चप्पल ले कर आए है | अगली बार से चिंकू के पापा को भेजूंगी साथ | अयाशी सूझी है इनको | यहाँ किट्टी पार्टी की किश्त देनी है , पार्लर वाली को एडवांस देना है , कार की सर्विस करवानी है , इंटीरियर डेकोरेटर को बुला रखा है उसका बकाया देना है | पर नहीं इनको तो अपनी पड़ी है | एक तरफ रमेश का आदर सत्कार करना और दूसरी तरफ अपने बहू बेटे की ऐसी बातों ने बाबू जी की आंखें नम कर दी | मन ही मन वो सोच रहे थे कि उनका रमेश को पढ़ने-लिखने का फैसला सही था या अपने खुद के बेटे को ज़िंदगी की हर सुख सुविधा देने का |
Ultimate 💓 touching story…..
Thank You Ashwani for your kind words ☺️
Hard truth of real life..😶
Yeah true. Thank You Param. 🤗
Very emotional story
Thankyou Prabhjot ☺️
Nice one 👍
Thank You Vanita 🤗
Too much emotional.
Very sad but todays reality
Thank You Indev ☺️
Well done.
Keep it up 😇
Thank You Shaweta dear 🤗
Amazing story 👌🏼
Thank You Dear 🤗
Very emotional and today’s real story. Best part of the story is the way its writen. May be i can’t describe that and can say way its written is excellent.
Thank You Gaurav Ji. Your words really means alot ☺️